गज़ल***महेंद्र जोशी
उम्रभर परछाई भी चलती रही
साथ ही तन्हाई भी चलती रही
मै चला तो ये समंदर भी चला
पहाड़ की हर खाई भी चलती रही
साफ़-सुथरे लोग थे सुनता रहा
अच्छे की रुसवाई भी चलती रही
मैं तो नंगे पाँव ही जा कर खड़ा
पेड़ की कटवाई भी चलती रही
इक कबूतर मन में पाला है अभी
दाने की चुगवाई भी चलती रही
उस तरफ खामोशिया बढती रही
इस तरफ सुनवाई भी चलती रही
दोस्त अब दानाइओ के वेश में
कब से ये सौदाइआ चलती रही
महेंद्र जोशी ....मार्च २०१४
उम्रभर परछाई भी चलती रही
साथ ही तन्हाई भी चलती रही
मै चला तो ये समंदर भी चला
पहाड़ की हर खाई भी चलती रही
साफ़-सुथरे लोग थे सुनता रहा
अच्छे की रुसवाई भी चलती रही
मैं तो नंगे पाँव ही जा कर खड़ा
पेड़ की कटवाई भी चलती रही
इक कबूतर मन में पाला है अभी
दाने की चुगवाई भी चलती रही
उस तरफ खामोशिया बढती रही
इस तरफ सुनवाई भी चलती रही
दोस्त अब दानाइओ के वेश में
कब से ये सौदाइआ चलती रही
महेंद्र जोशी ....मार्च २०१४
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